देशभक्ति और जांबाजी तो औरंगजेब के खून में थी, परिवार के कई लोग हैं सेना में

* शहीद के पिता ने कहा हमारा परिवार सैनिकों का परिवार
* हनीफ ने कहा- मैंने देश सेवा के लिए बेटे को सेना में भेजा था
* 'लोग अगर बच्चों को सेना में नहीं भेजेंगे तो फिर देश के लिए कौन लड़ेगा?'
* औरंगजेब के परिवार के कई लोग रह चुके हैं सेना में


नेशनल डेस्क. शहीदों का परिवार कैसा होता है इसकी मिसाल हैं सेना के जवान औरंगजेब की फैमिली। बेटा शहीद हो गया लेकिन पिता कहना है, 'मेरा बेटा मारा गया लेकिन फौज में अपने बेटों को भेजना बंद मत करना।' औरंगजेब के पिता मोहम्मद हनीफ पूछते हैं अगर लोग सेना में अपने बच्चों को नहीं भेजेंगे तो लड़ेगा कौन। बता दें कि औरंगजेब 4 जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंटरी में थे और फिलहाल उनकी तैनाती शोपियां के शादीमार्ग स्थित 44 राष्ट्रीय राइफल में थी। मेंढर तहसील के रहने वाले औरंगजेब को आतंकियों ने उस वक्त अगवा कर लिया था, जब वे छुट्‌टी लेकर निजी वाहन से ईद मनाने घर जा रहे थे। इसके बाद बर्बरता से उनकी हत्या कर दी थी। उन्हें गुरुवार सुबह 9:30 बजे कलमपोरा से अगवा किया गया था और उसी रात उनका शव पुलवामा में मिला था। दरअसल देशभक्ति और और जांबाजी औरंगजेब को विरासत में मिली है।  
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औरंगजेब की फैमिली में देश पर मर मिटने वाले और भी...

- औरंगजेब का पूरा परिवार ही देश के लिए मर मिटने को तैयार है। पिता हनीफ खुद आर्मी में रह चुके हैं। हनीफ के मुताबिक औरंगजेब के दादा भी आर्मी में थे और शहीद हुए थे। आतंकवादियों ने हनीफ के एक चाचा को भी मार डाला था। हनीफ के छह बेटों में सबसे बड़े बेटे का नाम मोहम्मद कासिम है, वो भी आर्मी में ही हैं। जबकि दो छोटे बेटे मो. तारिक और मो. शब्बीर भी आर्मी में जाने की तैयार में है। तारिक जहां लिखित परीक्षा और फिजिकल टेस्ट पास कर चुका है। वो फिलहाल मेडिकल टेस्ट के लिए पुणे में है। वहीं शब्बीर लिखित परीक्षा की तैयारी कर रहा है।

- 24 साल के औरंगजेब मेंढर के सलानी गांव के रहने वाले हैं, जहां उनका परिवार एक मंजिला मकान में रहता है। घरवाले उन्हें प्यार से 'जेबी' कहते थे। औरंगजेब की मां का नाम राज बेगम है। वे 10 भाई-बहनों में चौथे नंबर के थे। उनकी चार बहनें भी हैं।

- सेना से रिटायर हो चुके पिता मोहम्मद हनीफ की उम्र 55 साल है। बेटे की शहादत पर कहते हैं- 'मौत तो एक दिन आनी ही है, मैंने उसे देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती किया था। एक सैनिक का काम है वो दुश्मनों का खात्मा करे या शहीद हो जाए। हमारा परिवार सैनिकों का परिवार है।'

14 साल पहले औरंगजेब के चाचा की भी आतंकियों ने की थी हत्या

- औरंगजेब के चाचा मो. लतीफ खुद भी सेना से रिटायर्ड हैं। उनका कहना है कि 14 साल पहले आतंकियों ने इसी तरह हमारे छोटे भाई अब्दुल रहमान (औरंगजेब के चाचा) को घर से अगवा करने के बाद हत्या कर दी थी। उनके मुताबिक एकबार फिर आतंकियों ने हमारे परिवार पर कहर बरपा दिया है।

- लतीफ का कहना है कि 'हमने कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा, हम गरीब लोग हैं। गांव में ना ज्यादा खेती बाड़ी है, ना ही कोई रोजगार। अपना और परिवार का पेट पालने के साथ ही देश का कर्ज चुकाने के लिए हम सेना की नौकरी करते हैं। मैंने बीस साल आर्मी में दिए, मेरे भाई हनीफ ने 22 साल फौज में नौकरी की। औरंगजेब और उसका बड़ा भाई भी फौज में है। हमारे परिवार में अभी भी दर्जन भर लड़के फौज में हैं और इतने ही फौज से रिटायर हो चुके हैं।'

गांव के 70 प्रतिशत लोग सेना में

- शहीद औरंगजेब के गांव सलानी की खासियत ये है कि यहां रहने वाले हर दूसरे परिवार का कोई ना कोई सदस्य सेना या पुलिस में है।

- गांव के लोगों के मुताबिक एक वक्त पर पड़ोस के गांव कस्सबलाड़ी को आतंकियों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के बाद अपना दूसरा गढ़ बना रखा था। हालांकि हमारे गांव में कोई आतंक के रास्ते पर नहीं गया।

- सलानी गांव के करीब 70 प्रतिशत लोग सेना या पुलिस में जॉब कर रहे हैं। गांव में रहने वाले मोहम्मद का कहना है कि एक वक्त पर इस गांव में आतंकवादियों के बड़े-बड़े दल घूमा करते थे, तब भी हमारे गांव के नौजवान यहां आयोजित होने वाली सेना, सीआरपीएफ, बीएसएफ और पुलिस की भर्ती में सबसे आगे होते हैं।
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